सिद्ध श्री श्रवणनाथ जी भादू को भावपूर्ण श्रद्धांजलि



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मेरे दादाजी (श्री श्रवणनाथ जी भादू) की चतुर्थ पूण्यतिथी पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि
13 दिसंबर 2014
हमारे जीवन में दादाजी एक पेड़ की जड़ों के रूप मे जाने जाते है क्योंकि दादाजी आपनी जिंदगी में प्रत्येक अनुभव ग्रहण करते है और आगे आने वाली पीढ़ियों के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हैं।


जब मैं अपने घर की दीवार पर लगी दादा जी की तस्वीर को देखता हूं तब अचानक से दादा जी के आदर्श‌ सोच एंव विचार की बातें याद आ जाती हैं । आज हमारा परिवार दादाजी के त्याग एवं बलिदान के कारण इस शिखर तक पहुंच पाया है।
दादाजी के पिताजी मतलब मेरे परदादाजी (श्री दूर्गनाथ जी भादू) को सांप ने डंक मारा जिस कारण से परदादाजी भी छोटी अवस्था में मेरे दादाजी को छोड़कर चले गए। दादाजी और दादाजी के भाई श्री भंवरनाथ जी ने इस मूसीबत की घड़ी में अपने परिवार को सम्भाला तथा दादाजी ने प्रत्येक सदस्य को अपने जीवन में आनंद से रहना एवं सब के साथ प्रेम भाव से रहने की कला सिखाई।
दादा जी का जीवन साधारण एवं सकारात्मक सोच के साथ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में हमेशा लोगों के बीच प्रेम भाव के साथ व्यतीत हुआ। आज मेरे दादाजी मेरे साथ नहीं है लेकिन उनकी यादें एवं आदर्श बातें मेरे साथ जरूर मौजूद है । हालांकि मैं जब छोटा था तो पहले नाना जी के पास रहता था और आज भी नानाजी के पास ही रहता हूं लेकिन जब मैं गांव में जाता था तो मुझे अपने माता-पिता से ज्यादा अपने दादाजी से लगाव था क्योंकि दादाजी हम सभी भाई बहनों एवं बच्चों के सामने बच्चों के रूप में पेश आते और किसी भी चीज का जिद करते थे उस चीज को तूरंत हाजीर करवाते थे तथा लाड दुलार करते थे।
दादा जी ने अपने जिंदगी के अंतिम क्षणों में मेरी बड़ी दीदी को अपनी एक फोटो दी और बोले कि बेटा इस फोटो को हमेशा अपने पास रखना और मेरे जाने के बाद इस फोटो को देखकर मुझे याद करते रहना । दादाजी के द्वारा दी गई उस फोटो को दादाजी की निशानी के रूप में आज भी हमने संभाल कर रखा है।
 
दादा जी हमेशा सुबह जल्दी उठते तथा चाय पीने के बाद गाय-भैंसों को नहलाते तथा अपने हाथों से सहलाते थे जिस कारण उन पशुओं को भी दादाजी से काफी लगाव हो गया शायद इसी कारण जब दादाजी ने इस संसार को छोड़ा था तब एक -दो दिन तक हमारी गायों के आंखों में भी आसूं दिखाई दे रहे थे।
दादाजी हमेशा नित्यकर्म करने के बाद नहा कर घर के पास स्थित जसनाथ आसन में जाते थे तो कभी कभार मुझे भी अंगुली पकड़कर साथ मे ले जाया करते थे और बताया करते थे की अपनों से बड़ो के साथ कैसे अभिवादन करना चाहिए तथा पास की दुकान से चाकलेट या फल दिलाया करते थे।
                         खाना खाते समय दादाजी कहते थे की आदमी को कभी भी खाने का अपमान नही करना चाहिए तथा त्यौहार के दिन दादाजी अपने हाथो से हम सभी बच्चों को खाना खिलाते थे, दादाजी के समय हमारा परिवार संयुक्त परिवार था उस समय दादाजी कहा करते थे की घर की बहू और बेटी को साथ मे खाना खाना चाहिए जिससे उनके मध्य हमेशा प्यार बना रहे । रात्री का खाना ‌खाने के बाद दादाजी कूछ देर तक हम सभी बच्चों को अपने जीवन में किए गए साहसिक कार्य एवं भगवान जसनाथ जी महाराज की कहानीयां तथा ईमानदारी एवं सच्चाई वाली कहानीयां सूनाया करते थे।
दादाजी की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगता था परन्तु मैंने मेरे दादाजी को 16 बरस की उम्र में खो दिया । आज जब मैं समाज में एक ही घर के लोगों के बीच में कम होता नजदीकी पन और बढ़ती जा रही दूरियों को देखता हूं तो दादाजी की बहुत याद आती है क्योंकि दादाजी बताया करते थे की हम सभी को मेहनत करनी चाहिए क्योंकि मेहनत से बनी रोटी हमसे कोई नहीं छीन सकता और कभी किसी के साथ छल कपट का व्यवहार नहीं करना चाहिए। लेकिन आज के आधुनिक युग में लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए काफी हद तक गिर सकते हैं ऐसा दादाजी ने कभी सोचा नहीं होगा।
दादा जी आप हमेशा हमारे प्रेरणास्रोत बने रहेंगे और आज से कूछ समय पहले आंखों से ओझल जरूर हो गए हैं लेकिन आप दिल से कभी नहीं जा पाओगे।
                                            आपका पौत्र
                                           लोकेश
🌺🌺दादाजी के चरणों में समर्पित 🌺🌺

**श्रद्धान्वत**
समस्त भादू परिवार,पांचला सिद्धा


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