जसनाथ जी महाराज द्वारा प्रतिपादित 36 नियम

        https://youtu.be/M9JPI83arbE
जसनाथजी ने लालमदेसर के रामू सारण को समाज के मार्गदर्शन हेतु 36 धर्म नियम बताए। ये नियम आगे चलकर नवीन सिद्ध धर्म की आधारशिला बने। इनके बारे में कहा जाता है कि –
“नेम छत्तीस ही धर्म के कहे गुरु जसनाथ, या विध धर्म सुधारसी, भव सागर तिर जात।”
इन नियमों के जरिए जसनाथजी महाराज थोड़े शब्दों में ही वेदों और शास्त्रों का सार कह गए। सबसे अच्छी बात यह थी कि ये नियम जनसाधारण की मायड़ भाषा में थे।
1.जो कोई सिद्ध धर्म धरासी
2.उत्तम करणी राखो आछी
3.राह चलो, धर्म अपना रखो
4.भूख मरो पण जीव ना भखो
5.शील स्नान सांवरी सूरत
6.जोत पाठ परमेश्वर मूरत
7.होम जाप अग्नीश्वर पूजा
8.अन्य देव मत मानो दूजा
9.ऐंठे मुख पर फूंक ना दीजो
10.निकम्मी बात काल मत कीजो
11.मुख से राम नाम गुण लीजो
12.शिव शंकर को ध्यान धरीजो
13.कन्या दाम कदै नहीं लीजो
14.ब्याज बसेवो दूर करीजो
15.गुरु की आज्ञा विश्वंत बांटो
16.काया लगे नहीं अग्नि कांटो
17.हुक्को, तमाखू पीजे नाहीं
18.लसन अर भांग दूर हटाई
19.साटियो सौदा वर्जित ताई
20.बैल बढ़ावन पावे नाहीं
21.मृगां बन में रखत कराई
22.घेटा बकरा थाट सवाई
23.दया धर्म सदा ही मन भाई
24.घर आयां सत्कार सदा ही
25.भूरी जटा सिर पर रखीजे
26.गुरु मंत्र हृदय में धरीजे
27.देही भोम समाधि लीजे
28.दूध नीर नित्य छान रखीजे
29.निंद्या, कूड़, कपट नहीं कीजे
30.चोरी जारी पर हर ना दीजे
31.राजश्वला नारी दूर करीजे
32.हाथ उसी का जल नहीं लीजे
33.काला पानी पीजे नाहीं
34.नाम उसी का लीजे नाहीं
35.दस दिन सूतक पालो भाई
36.कुल की काट करीजे नाहीं
यहाँ देखा जाए तो ‘जो कोई सिद्ध धर्म धरासी’ से वस्तुतः एक ही नियम ‘जो भी सिद्ध धर्म का पालन करेगा, वह सदैव उत्तम कार्य करेगा’ बनता है। नियमों की संख्या में इस कमी का कारण लगातार मौखिक परम्परा के रूप में प्रचलित होने से कुछ नियमों यथा ‘पिंडा दान कदै ना कीजे’ (श्राद्ध तर्पण का निषेध) जैसे नियमों का जन स्मृति से लोप है। पहले ही नियम से स्पष्ट है की जसनाथ जी ने कर्मवाद को महत्त्व दिया है। ‘राह चलो, धर्म अपना रखो’ के माध्यम से जसनाथजी ने पथभ्रष्ट होने से बचने एवं स्वधर्म पालन का निर्देश दिया है जो तत्कालीन मुस्लिम शासन में लम्पट धर्मांतरण के विरोध में था, आज के भौतिकता वादी युग में पश्चात्यीकरण के सम्बन्ध में प्रासंगिक है। ‘गुरु मंत्र हृदय में धरीजे’ के जरिए भी जसनाथजी ने इसी बात की चेतावनी दी है। ‘भूख मरो पण जीव ना भखो’ जसनाथजी ने अहिंसा पर बल देते हुए कहा है की किसी जीव की हत्या करने से अच्छा है भूख मरना, इससे सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि जसनाथजी प्राणियों के प्रति कितने संवेदनशील थे। इस बात का एक सबूत यह भी है कि जसनाथजी द्वारा सर्वाधिक नियम इसी विषय पर है। प्राणिमात्र के प्रति दया भाव के अनुरूप ‘दया धर्म सदा ही मन भाई’ उस भाव को यथार्थ से जोड़ने हेतु पशुओं को साटियों/कसाइयों को बेचने की बजाय साथी पशुपालकों को बेचने का निर्देश ‘साटियो सौदा वर्जित ताई’, पशु क्रूरता को रोकने हेतु बछड़ों के बधियाकरण रोकना ‘बैल बढ़ावन पावे नाहीं’, वन्य जीवों विशेषतः स्थानीय छोटे हिरणों (चिंकारा) के संरक्षण का निर्देश ‘मृगां वन में रखत कराई’ और इसी क्रम में घेटों और अमर बकरों के लिए थाट की व्यवस्था का निर्देश ‘घेटा बकरा थाट सवाई’ दिया है। ‘शील स्नान सांवरी सूरत’ में जसनाथ जी ने शारीरिक स्वच्छता के महत्व को समझते हुए नित्य प्रतिदिन स्नान का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि जब पड़ौसी गांव मौलानिया के चौधरी ने जसनाथजी से अपने ऊँट के बारे में पूछा तो जसनाथजी ने उससे नित्य स्नान का वचन लिए। शरीर के अलावा व्यक्ति का मन भी शुद्ध होना चाहिए इसी विश्वास के साथ जसनाथ जी ने लोगों को ‘निंद्या, कूड़, कपट नहीं कीजे’ निर्देश दिया है। लोगों की संपत्ति पर कुदृष्टि ना डालने का कहते हुए ‘चोरी जारी पर हर ना दीजे’ का निर्देश। ‘जोत पाठ परमेश्वर मूरत’ तथा ‘होम-जाप अग्नीश्वर पूजा’ सिद्ध धर्म की पूजा पद्धति का आधार बने। ‘अन्य देव मत मानो दूजा’ के जरिए जसनाथजी ने एक ही नियम से सिद्धों को एकेश्वरवाद को अपनाने को कह दिया। अग्नि मानव के प्रथम आविष्कारों में से एक है, यह प्रागैतिहासिक काल से हमारे काम आ रही है, गंगा की तरह सब अशुद्धियों को नष्ट करके भी स्वयं अपवित्र नहीं होती, अतः उच्छिष्ट मुख से इसमें फूंक देकर इसके अपमान को ‘ऐंठे मुख पर फूंक ना दीजो’ के जरिए निषेध किया। जो मनुष्य निर्जीव वस्तुओं, पशु-पक्षियों के प्रति भी कृतज्ञता रखेगा वह मानव समाज के लायक बनेगा। प्रकृतिपूजक समाजों का मर्म यही है। ‘निकम्मी बात काल मत कीजो’ में समय के मूल्य और शब्दों के महत्त्व को समझते हुए गुरु महाराज ने व्यक्ति को मितभाषी बनने और व्यर्थ प्रलाप से बचने की सलाह दी है। ‘मुख से राम नाम गुण लीजो’ तथा ‘शिवशंकर को ध्यान धरीजो’ 

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने