सिद्ध संप्रदाय का विजय दिवस




 ज्येष्ठ शुक्ला *द्वितीया* विक्रम संवत *१७३६* दिल्ली के कट्टर और क्रुर बादशाह औरंगजेब पर सिद्ध *रुस्तम* जी महाराज के नेतृत्व में  चुनौती स्वीकार करते हुए *सिद्ध* *संप्रदाय* ने गुरु *जसनाथ* जी के आदर्शों पर चलते हुए *आध्यात्मिक* *विजय* प्राप्त की।

विश्व प्रसिद्ध अ़ंगारा नृत्य (अग्नि नृत्य) की शुरुआत की ।

बादशाह औरंगजेब ने पराजय स्वीकार करते हुए  सिद्ध रुस्तम जी से उपजाऊ क्षेत्र पंजाब और बहुत सी धन दौलत ,हीरे जवाहरात देने की पेशकश की , निर्लिप्त सिद्ध रूस्तम जी ने सब कुछ ठुकराते हुए एक *चमत्कारी* *गुदड़ी* ली ।

पुरे राजस्थान (तत्कालीन राजपुताना) में जीव हत्या,डोला प्रथा,धर्म परिवर्तन, मुगलों के अत्याचार पर रोक लगी,हवन एवं जीवरक्षा जैसे पवित्र कार्यों की छूट मिली, सिद्धों को पुरे भारतवर्ष में *दो* *नगारे* और निशान( *भगवा* *ध्वज* ) लेकर घुमने की अनुमति मिली ।

और आखिर में इस *गुदड़ी* के छिनने से ही विशाल मुगल साम्राज्य *पतन* की और उन्मुख होकर धराशाई हुआ।

आज का दिन गुरु जसनाथ जी के हर अनुयाई और हर हिंदू के लिए बहुत ही *गौरवशाली* दिन है।


हमें आज के दिन को *विजय* *दिवस* के रूप में मनाना चाहिए।

बाड़ी में जाकर हवन करना चाहिए।

प्रसाद वितरण करना चाहिए।

और हमारे समस्त महापुरूषों का जयकारा लगाना चाहिए।


जय गुरु गोरखनाथ जी की

जय गुरु जसनाथ जी की

जय सिद्ध रूस्तम जी की।


ऊं नमो आदेश 🙏🙏🙏

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